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रविवार, 28 फ़रवरी 2010

न्यूटन की साइकिल और हैप्पी होली

होली से तीन दिन पहले 26 की सुबह-सुबह जब सूरज भी नहीं उगा था, ठीक 6 बजकर 8 मिनट पर जैसा मैंने बताया था, दिल्ली के अपने घर की छत से मैंने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के गुजरने का शानदार नजारा देखा। पांच मिनट तक मद्धम चाल से चलता एक बड़े सितारे जैसा स्पेस स्टेशन आसमान के एक ओर से दूसरी ओर तक गया। खुशी में भरकर मैंने पत्नी को जोर से आवाज दी, जिसके बारे में बाद में पड़ोस की सहेलियां पत्नी से पूछताछ कर रहीं थीं, कि भई सुबह-सुबह इतनी खुशी क्यूं? पत्नी ने भी मुस्कराते हुए मजाक में जवाब दे दिया कि भई फागुन है, कुछ भी और कभी भी संभव है।
हिंदी में साइंस को लोकप्रिय बनाने की तपस्या में लंबे समय से रमे मेरे मित्र बलदेव राज दावर जी ने अपनी ये कविता मुझे होली की शुभकामना के साथ भेजी है। ये कविता उन्होंने आल्हा के तर्ज पर लिखी है और साइकिल को सामने रखते हुए बड़ी खूबसूरती और सादगी के साथ न्यूटन के तीनों नियम समझाए हैं। दावर जी, आप एक बार फिर छा गए...
मेरी साइकिल
(न्यूटन के तीनों नियम- आल्हा की तर्ज पर)
(न्यूटन का पहला नियम - अगर कोई चीज गतिमान या स्थिर है तो वो तब तक गतिमान या स्थिर रहेगी, जब तक कि कोई बाहरी बल उसे स्थिर या गतिमान नहीं कर दे)
साइकिल मेरी ढीठम-ढीठ, हिलती नाहीं बिना हिलाए
पत्थर की मूरत जैसे हो, चलती नहीं बिना चलाए।
टस से मस ना होने वाली, कोई ताकत बिना लगाए।
या फिर वो चंदा के जैसी, उड़न-खटोली उड़ती जाए
बादल नीचे साइकिल ऊपर, हर पल सीधी-सीधी जाए।
कैसे रोकूं, कैसे मोडूं, कैसे उसकी ब्रेक लगाऊं
कैसे उसको तेज करूं मैं, कोई ताकत बिना लगाए।
टस से मस ना होने वाली, कोई ताकत बिना लगाए।
( दूसरा नियम - किसी चीज का बल, उसके द्रवमान यानि वजन और एक्सीलरेशन यानि लगातार बढ़ती रफ्तार के गुणन के बराबर होता है)
जितनी ताकत उतनी हरकत, जितना धक्का उतनी धाए,
दुगुना-तिगना जोर लगाऊं, दुगनी-तिगनी चाल बढ़ाए।
पर कुछ साइकिल पर भी निर्भर, वो भी अपने पैर जमाए।
जितनी भारी साइकिल होगी, उतनी धीमी-धीमी जाए।
टस से मस न होने वाली कोई ताकत बिना लगाए।
(तीसरा नियम- हर क्रिया की प्रतिक्रिया भी जरूर होती है)
उसकी मेरी खींचा-तानी, जैसे को तैसा बतलाए
जितना ही मैं उसे दबाऊं, उतना ही वो मुझे उठाए।
मैं उसको जब दाएं मोड़ूं, वो मुझको बाएं लटकाए।
सड़कें उसको आगे फेंके, वो पीछे को सड़क हटाए।
टस से मस न होने वाली कोई ताकत बिना लगाए।
सौजन्य- बलदेवराज दावर

बुधवार, 24 फ़रवरी 2010

खतरनाक होता ई-कचरा

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की संचालन परिषद की बैठक के दौरान जारी एक रिपोर्ट में कहा गया कि अगले 10 सालों में भारत, चीन और अन्य विकासशील देशों में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की बिक्री बहुत तेजी से बढ़ेगी। इस तरह इनसे निकलने वाले -कचरे का पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
रिपोर्ट के अनुसार, इस समय भारत में फ्रिज से 100,000 टन, टीवी से 275,000 टन, कंप्यूटर से 56,300 टन, प्रिंटर से 4,700 टन और मोबाइल फोन से 1,700 टन -कचरा हर साल निकलता है। अनुमान है कि 2020 तक पुराने कंप्यूटरों की वजह से इलेक्ट्रॉनिक कचरे का आंकड़ा भारत में 500 फीसदी और दक्षिण अफ्रीका चीन में 200 से लेकर 400 फीसदी तक बढ़ जाएगा।
2020
तक भारत में मोबाइल फोन से निकला -कचरा 2007 की तुलना में 18 फीसदी और चीन में सात फीसदी अधिक होगा। साथ ही चीन और भारत में टीवी के -कचरे में डेढ़ से दोगुना तक का इजाफा होगा जबकि रेफ्रिजरेटर से निकलने वाला इलेक्ट्रॉनिक कचरा दो से तीन गुना तक बढ़ जाएगा। भारत में असंगठित रूप से रिसाइकलिंग करने वाले लोग सोने जैसी धातु हासिल करने के लिए ज्यादातर -कचरा जला देते हैं। इससे काफी मात्रा में विषैली गैसें निकलती हैं। इस प्रदूषण के खतरे की तुलना में प्राप्त धातुओं की कीमत हालांकि बहुत कम होती है।

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

आसमान में 5 मिनट का शो

फागुन का महीना है और इस खिली-खिली सी फिजा में सुबह जल्दी उठने से बेहतर कुछ भी नहीं। दोस्तों अगर आप शुक्रवार की सुबह साढ़े पांच- छह बजे तक बिस्तर छोड़ दें तो आसमान में एक शानदार नजारा देख सकते हैं। एक तेज चमकीली रोशनी आसमान में एक ओर से दूसरी ओर तक दौड़ती नजर आएगी। ये गुजरती हुई तेज रोशनी न तो कोई उल्का है और न कोई धूमकेतु या कुदरत का कोई करिश्मा। ये हमारा करिश्मा है, ये है आपके सिर से करीब 400 किलोमीटर ऊपर इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन जिसमें चार अंतरिक्षयात्री अब भी मौजूद हैं।
यूं तो इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन एक चकमीली रोशनी के रूप में अकसर आसमान में गुजरता नजर आता है, लेकिन 26 फरवरी को ये इस सीजन में सबसे ज्यादा देर यानि 5 मिनट तक गुजरता हुआ दिखेगा। इसे देखने के लिए सूरज डूबने की दिशा में मुंह करके खड़े हो जाएं और अपने दाहिने हाथ की तरफ आसमान में क्षितिज से कुछ ऊपर देखें यहीं आपको एक तेज चमकीली रोशनी सी नजर आएगी। क्षितिज के पास आप इसे ठीक से देख पाएंगे, क्योंकि जैसे-जैसे ये रोशनी ऊपर आएगी, संभव है कि दिन के आसमान की चमक इसे छिपा ले। लेकिन जैसे ही ये चमक विपरीत दिशा की क्षितिज को छुएगी आप इसे फिर से देख पाएंगे। 26 फरवरी को अलग-अलग शहरों में इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के नजर आने का समय इस प्रकार है -
दिल्ली और आसपास सुबह 06 बजकर 08 मिनट अवधि 5 मिनट
चंडीगढ़ और आसपास सुबह 06 बजकर 08 मिनट अवधि 4 मिनट
पुणे और आसपास सुबह 06 बजकर 09 मिनट अवधि 3 मिनट
नागपुर और आसपास सुबह 06 बजकर 09 मिनट अवधि 5 मिनट
मुंबई और आसपास सुबह 06 बजकर 08 मिनट अवधि 3 मिनट
कोलकाता और आसपास सुबह 04 बजकर 36 मिनट अवधि 2 मिनट
जामनगर और आसपास सुबह 06 बजकर 08 मिनट अवधि 3 मिनट
हैदराबाद और आसपास सुबह 07 बजकर 18 मिनट अवधि 1 मिनट
चेन्नई और आसपास सुबह 06 बजकर 11 मिनट अवधि 1 मिनट
बैंगलोर और आसपास सुबह 06 बजकर 10 मिनट अवधि 3 मिनट

बुधवार, 10 फ़रवरी 2010

चंद्रयान ने खोजी-चांद पर सुरंग

चंद्रमा की सतह पर मध्य रेखा के करीब एक सुरंग मिली है, जो वहां जाने और बसने वाले अंतरिक्षयात्रियों के लिए प्राकृतिक पनाहगाह हो सकती है। इसरो साइंटिस्ट एस. एफ. ए. एस. आर्या के मुताबिक, यह गुफा ज्वालामुखी से बनी एक खाली ट्यूब जैसी है। इसकी लंबाई 2 किलोमीटर और चौड़ाई करीब 360 मीटर है। आर्या इस जानकारी को 1 से 5 मार्च के दौरान ह्यूस्टन में होने वाली समिट में साझा करेंगे। आर्या के मुताबिक, इस सुरंग का पता तब चला जब टीएमसी (टेरियन मैपिंग कैमरा) के आंकड़ों का विश्लेषण किया जा रहा था। इस खोज से चंद्रमा पर स्थायी बेस बनाने की भारत की इच्छा पूरी होगी। यह सुरंग भूमिगत चौकी की तरह है। इसकी छत अंतरिक्षयात्रियों को उल्काओं की खतरनाक बारिश, मौसम के असर और तापमान में उतार-चढ़ाव से सुरक्षित रखेगी। चंद्रमा के चमकीले हिस्से वाली सतह पर तापमान आमतौर पर 300 डिग्री सेल्सियस तक रहता है। चंद्रमा पर न तो एनवायरनमेंट है और न ही धरती जैसा गुरुत्वाकर्षण बल। इसलिए सूरज से निकलने वाली रोशनी अंतरिक्षयात्रियों को नुकसान पहुंचा सकती है। ये तेज रोशनी अंतरिक्षयात्रियों की कोशिकाओं को प्रभावित करती है। इसलिए चांद पर ऐसी जगह की जरूरत है, जो चांद पर अंतरिक्षयात्रियों को सूर्य की रोशनी से बचा सके। ये गुफा उसी काम आ सकती है। चंद्रयान-1 ने चंद्रमा पर पानी की खोज के साथ नई तरह की चट्टानों का पता भी लगाया है। अहमदाबाद की फिजिकल रिसर्च लैबोरेटरी में हाल में चंद्रयान पर हुए दो दिन के सम्मेलन में इसकी घोषणा की गई। इन चट्टानों को नासा के उसी मून मिनरॉलजी मैपर (एम3) ने खोजा है, जिसने पानी का पता लगाया था। ये चट्टानें आकार में छोटी हैं। फिलहाल वैज्ञानिक इनका विश्लेषण कर रहे हैं। हालांकि इन चट्टानों में जो खनिज पाए गए हैं, वे पहले की चट्टानों में पाए गए खनिजों की तरह हैं। लेकिन इन चट्टानों में खास बात उन खनिजों का कॉम्बिनेशन है।

एन्सेलॉड्स पर जीवन ?

नासा के वैज्ञानिक धरती से दूर कहीं जीवन की संभावना तलाश रहे हैं। इस तलाश में वैज्ञानिकों को कामयाबी मिली है शनि ग्रह के चंदमा एन्सेलॉड्स पर। नासा का कहना है शनि के इस चंद्रमा पर तरल पानी हो सकता है। असल में एन्सेलॉड्स के ऊपर से उड़ान भरते हुए नासा के स्पेसक्राफ्ट कसीनी को बफीर्ले बादलों का झुंड मिला। अगर एन्सेलॉड्स पर तरल पानी मिला तो कहा जा सकता है कि यहां जीवन पनपने की अपार संभावनाएं हैं। नासा के मुताबिक, बर्फ का यह गुबार एन्सेलॉड्स पर मौजूद बर्फीले ज्वालामुखियों से निकला है। जब बर्फ के बारीक कणों का विश्लेषण किया गया तो देखा गया कि ये पानी के नेगेटिव आयन हैं। नेगेटिव आयनों का मिलना बताता है कि एन्सेलॉड्स पर सतह के नीचे कोई समंदर बह रहा है। हमारे ग्रह धरती पर भी इस तरह के आयन बहते हुए पानी में मिलते हैं, जैसे झरने या एक-दूसरे से टकराती समुद्र की लहरें। कसीनी के साइंटिस्ट डॉ. ऐंड्रू कोएट्स का कहना है, ये सभी सबूत इस बात की ओर इशारा करते हैं कि शनि के छठे सबसे बड़े चंद्रमा पर जिंदगी के लिए जरूरी बाकी चीजें भी होंगी, जैसे कार्बन और पानी को तरल बनाए रखने के लिए गर्मी। नासा के वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस चंद्रमा के दक्षिणी धुव के नीचे पानी का भंडार हो सकता है। वैज्ञानिक कसीनी को बड़ी मात्रा में मिले बर्फीले गुबार के आकार से भी उत्साहित हैं। कोएट्स के शब्दों में, इन आयनों की इतनी बड़ी तादाद देखकर हम हैरान रह गए। हमें स्पैक्ट्रम में ऐसे कई इलाके दिखे जहां ये बहुत ज्यादा थे। जब इनकी स्टडी की गई तो हमने पानी का वह गुण देखा जिसकी वजह से ये अणु एक-दूसरे से चिपक रहे थे। जीवन की संभावना से जुड़ी यह ताजा खोज जरनल इकरस में छपी हैं।

सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

बेवकूफ बन गए शाहरुख-चांद-खान

अगर आप भी अपना नाम चांद पर दर्ज कराना चाहते हैं तो ये इतना मुश्किल काम भी नहीं है। चौंकिए मत। कई ऐसे प्राइवेट ग्रुप हैं जो कुछ पैसे लेकर चांद के किसी क्रेटर को आपका नाम या फिर चांद की जमीन के टुकड़े का मालिकाना हक आपको देने का सटिर्फिकेट बांट रहे हैं। दिल को खुश रखने के लिए खयाल अच्छा है, लेकिन एस्ट्रोनॉमर कम्युनिटी और इंटरनैशनल संगठनों की नजर में इसकी कोई मान्यता नहीं है। यानी न तो चांद पर शाहरुख खान के नाम के क्रेटर की कोई मान्यता है और न ही मायावती को गिफ्ट किए गए चांद के प्लॉट की। कुछ दिनों पहले न्यू यॉर्क स्थित इंटरनैशनल लूनर जियोग्राफिक सोसाइटी ने कहा था कि उसने चांद पर एक क्रेटरयानी गड्ढे का नाम शाहरुख खान रखा है। ये वही संस्था है जो लोगों को चांद पर प्लॉट काटकर इंटरनेशनल लुनर सोसाइटी के नाम से बेच रही है। मायावती को चांद पर प्लॉट इसी संस्था ने दिया है। शाहरुख के नाम पर क्रेटर की खबर आते ही उनके ट्विटर एकाउंट पर बधाई देने वालों का तांता लग गया। इस वाहवाही में शाहरुख भी बहक गए, दो दिन बाद अपना ट्विटर अपडेट करते हुए शाहरुख ने लिखा अब मेरा एक नाम और है..चांद। उन्होंने ये भी लिखा कि दो दिन तक ट्विटर पर न आने की वजह ये थी कि वो चांद पर गए थे, अपने क्रेटर को देखने। शाहरुख मीडिया पर भी खुश-खुश नजर आए और अपनी नई फिल्म माई नेम इज खान के प्रचार के साथ उन्होंने चंद्रमा के क्रेटर को भी भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बस शाहरुख यहीं बेवकूफ बन गए। कोई बयान जारी करने से पहले वो कुछ नहीं तो मुंबई प्लेनेटोरियम के निदेशक से ही मिल लेते तो उन्हें बात समझ में आ गई होती। लेकिन कामयाबी के शिखर पर भी और ऊंचा उड़ने की ख्वाहिश में वो सब कुछ भूल गए। उन्हें भनक भी नहीं हुई कि ये मामला बॉलीवुड की जबान में कहें तो फिल्म 'बंटी और बबली' में ताजमहल बेच देने जैसा ही है। इंटरनैशनल लूनर जियोग्राफिक सोसायटी एक प्राइवेट ग्रुप है जिसका नाम पहले लूनर रिपब्लिक सोसाइटी था। ये दुनिया भर में मोटी रकम के बदले चंद्रमा पर प्लॉट से लेकर लूनर क्रेटर के नाम बेच रही है या गिफ्ट कर रही है। लेकिन सबको, खासतौर पर भारतीयों को ये जानना बेहद जरूरी है कि चंद्रमा बिकाऊ नहीं है। ये किसी एक व्यक्ति या देश की निजी संपत्ति न पहले कभी था - न है - और न कभी भविष्य में होगा।
चंद्रमा के क्रेटर्स के नामकरण से लेकर हमारे सौरमंडल और पूरे ब्रह्मांड में हम जिन नई-नई चीजों को खोज रहे हैं उनके नामकरण का काम केवल एक एजेंसी करती है, जिसका नाम है इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमी यूनियन। मैंने खुद इस मामले पर जांच की है और मेरे मेल के जवाब में इंटरनैशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन (आईएयू) के जनरल सेक्रेटरी इएन कॉबेर्ट ने साफ कहा है कि इंटरनैशनल लूनर जियोग्राफिक सोसायटी चंद्रमा के क्रेटर्स का नाम रखने के लिए अधिकृत नहीं है और शाहरुख के नाम पर क्रेटर का नाम रखना फर्जी है। यूनाइटेड नेशन आउटर स्पेस ट्रीटी के मुताबिक भी खगोलीय स्पॉट और बॉडी को बेचने की इजाजत किसी को नहीं है।