फ़ॉलोअर

शुक्रवार, 4 मार्च 2011

‘नेचुरल सेलेक्शन’ यानि प्राकृतिक चयनवाद मानव जाति के लिए सबसे बड़ा खतरा


प्रोफेसर क्रिश्चियन-डि-डुवे एक मशहूर जीवविज्ञानी और विजनरी लेखक हैं। कोशकीय संरचना में रिसर्च के लिए उन्हें 1974 में जीवविज्ञान के नोबेल से सम्मानित किया जा चुका है। प्रो. क्रिश्चियन बेल्जियम की कैथोलिक यूनिवर्सिटी आफ लाऊवेन और न्यूयार्क की रॉकेफेलर यूनिवर्सिटी में विजटिंग प्रोफेसर हैं। येल यूनिवर्सिटी प्रेस ने उनकी नई किताब प्रकाशित की है, जिसका शीर्षक है – जेनेटिक्स आफ ओरीजनल सिन।
 इस किताब में प्रो. क्रिश्चिन ने ये कहकर दुनिया का ध्यान खींचा है कि नेचुरल सेलेक्शन यानि प्राकृतिक चयनवाद अब मानव जाति के खिलाफ काम कर रहा है। वॉयेजर पेश करता है प्रोफेसर क्रिश्चियन-डि-डुवे से बातचीत के अंश -
सवाल-इस ग्रह पर मानव जाति सबसे सफल जीव प्रजाति है, लेकिन आपका कहना है कि आखिरकार हमें इस सफलता की कीमत चुकानी होगी। ऐसा क्यों ?
प्रो.क्रिश्चिन -हम मानवों ने प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के जरिए धरती की सबसे सफल जीव प्रजाति का दर्जा हासिल किया है। लेकिन इससे ऊर्जा संकट, पर्यावरण में बदलाव, प्रदूषण और इस ग्रह पर जीवन को सहारा देने वाली स्थितियों के ह्वास जैसी समस्याएं पैदा हो गईं। अगर आप कुदरती संसाधनों का दोहन करते चले जाएंगे तो अपने बच्चों को देने के लिए आपके पास कुछ भी नहीं होगा। अगर हम इसी दिशा में आगे बढ़ते रहे तो अगर हम सामूहिक विनाश जैसी घटनाओं से बच भी गए, तो भी मानव जाति को भविष्य में निर्मम अग्निपरीक्षा का सामना करना होगा।
सवाल -आपका मानना है कि नेचुरल सेलेक्शन यानि प्राकृतिक चयनवाद अब हमारे यानि मानव जाति के खिलाफ काम कर रहा है, ये आखिर कैसे ?
प्रो.क्रिश्चिन -क्योंकि अब दूरदर्शिता नहीं रही। नेचुरल सेलेक्शन यानि प्राकृतिक चयनवाद हमारे जीन्स में छिपी कुछ खास विशिष्टताओं के जरिए काम करता है जैसे कि सामूहिक स्वार्थता (group selfishness)। हमारे आदिपूर्वज जिन हालातों में गुजर-बसर कर रहे थे, ये विशिष्टता तब पूरे समूह के लिए बड़े काम की थी, लेकिन यही विशिष्टता अब हमें सबसे ज्यादा नुकसान भी पहुंचा रही है। हमारे ही जीन्स में एक कोड ये भी दर्ज है कि भविष्य की भलाई के लिए हम वर्तमान को बलिदान करें हमारे जीन्स की ये दूसरी विशिष्टता हमारे प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करने में योगदान भी कर सकती है। अब हमें ये समझदारी दिखानी होगी कि बेहतर भविष्य के लिए कुछ बेहद जरूरी चीजों के लिए हम तात्कालिक फायदे वाली अपनी कुछ चीजों का बलिदान करें। नेचुरल सेलेक्शन या प्राकृतिक चयन ऐसा नहीं करता, इसकी प्राथमिकता में केवल ये तय करना होता है कि आज क्या हो रहा है? और बेहतर आज के लिए अभी क्या जरूरी है? नेचुरल सेलेक्शन या प्राकृतिक चयन आपके बच्चों और पोतों-पड़पोतों के साथ क्या होगा, इसकी परवाह नहीं करता।
सवाल -आपने दूरदर्शिता के इस अभाव को ओरीजिनल सिन रहा है। आपने इस विशेषण का इस्तेमाल क्यों किया?
प्रो.क्रिश्चिन- ये बाइबिल का टर्म है। मेरा मानना है कि बाइबिल के एक खास खंड- जेनेसिस के लेखकों ने मानव प्रकृति में गहरे पैठी हुई स्वार्थपरता की पहचान कर ली थी। मैं कहता हूं कि ये चीज हमारे जीन्स में है। इसीलिए इसे बताने के लिए ही ओरीजिनल सिन के मिथक की रचना की गई होगी। लेकिन मैं प्राचीन ग्रंथों का व्याख्याकार नहीं हूं, यहां ओरीजिनल सिन से मेरा मतलब प्राकृतिक संसाधनों के लगातार दोहन से है, जिसके दुष्परिणाम हमें या हमारी संतानों को आगे भुगतने होंगे। 
सवाल- मानव जाति इस ओरीजिनल सिन से कैसे उबर सकती है ?
प्रो.क्रिश्चिन- हमें नेचुरल सेलेक्शन या प्राकृतिक चयन के विरुद्ध काम करना होगा और हमारे जीन्स में मौजूद कुछ विशिष्टताओं की खिलाफत सक्रियता से करनी होगी।
सवाल- आपने एक समाधान के तौर पर जनसंख्या नियंत्रण का सुझाव दिया है। लेकिन क्या ये धार्मिक रूप से विवादास्पद नहीं है?
प्रो.क्रिश्चिन- ये तो सामान्य सी बात है। अगर आप चाहते हैं कि ये ग्रह हर किसी के जीने के काबिल बना रहे तो आपको यहां रहने वालों की तादाद नियंत्रित करनी होगी। देखिए किसी भी झुंड में शिकार वही जानवर बनते हैं जो कमजोर, बीमार या बूढ़े होते हैं। लेकिन मैं नहीं मानता कि जनसंख्या नियंत्रित करने का ये तरीका नैतिक है। तो फिर सवाल ये कि हमें क्या करना चाहिए ? इसका जवाब है जन्म पर नियंत्रण। हमारे पास जन्म पर नियंत्रण के लिए नैतिक, धार्मिक, व्यावहारिक और वैज्ञानिक हर तरह के उपाय हैं। इसलिए मेरे विचार से जन्म को नियंत्रित करना ही वो सबसे कारगर उपाय है जिससे जनसंख्या सीमित रखी जा सकती है।
सवाल- आप महिलाओं को और भी ज्यादा अधिकार दिए जाने की वकालत करते हैं, ऐसा क्यों ?
प्रो.क्रिश्चिन- एक जीवविज्ञानी के तौर पर कहूं तो, मेरे विचार से महिलाएं पुरुषों के मुकाबले कम आक्रामक होती हैं और वो नई पीढ़ी को शिक्षित करने में कहीं ज्यादा व्यापक और महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाती हैं। ऐसा करके महिलाएं बच्चों को उनके जीन्स में मौजूद उस विरासत से उबारने का काम करती हैं, जो उन्हें अपने पूर्वजों, आदिपूर्वजों से मिली होती हैं।
सवाल- मानवजाति के भविष्य के बारे में क्या आप आशान्वित हैं ?
प्रो.क्रिश्चिन- मैं आशान्वित हूं लेकिन सतर्कता के साथ, बेहद सतर्कता के साथ। मैं आशान्वित होने की कोशिश कर रहा हूं, क्योंकि मैं नौजवानों और आने वाली पीढ़ी को एक उम्मीद का संदेश (message of hope) देना पसंद करूंगा। मैं उनसे ये कहना चाहूंगा कि इस मसले में अब तुम कुछ कर सकते हो। लेकिन वर्तमान में अभी ऐसे कोई संकेत भी नहीं मिल रहे कि ऐसा कुछ हो रहा है।

2 टिप्‍पणियां:

  1. आप साइंस से जुडी ताज़ातरीन जानकारियां और शोधों से सीधे जुडे वैग्यानिकों की टिप्पणियां हिंदी में ले आते हैं, यह काबिले तारीफ़ है.
    यह विषय भी रोचक है और उत्सुकता जताता है, लेकिन इस छोटे से साक्षात्कार से कुछ खास स्पष्ट नहीं हो पाया.
    स्त्रियों को आगे बढाने की बात अच्छी तो है, पर कम आक्रामक होने के फ़ायदे क्या हैं यह भी साफ़ नहीं है.
    आपको अपने इनपुट्स देते हुए बताना होगा कि प्राक्रितिक चयन ने अब तक मानव का कैसे और क्यों साथ दिया और अब हमें उसे उल्टा करने के लिये वास्तव में क्या करना होगा और क्यों?
    - विवेक गुप्ता

    जवाब देंहटाएं
  2. 'वॉयेजर' को समर्थन के लिए हृदय से धन्यवाद। प्राकृतिक चयन ने अब तक मानव का कैसे और क्यों साथ दिया और अब हमें उसे उल्टा करने के लिए क्या करना होगा और क्यों - आपने मुझे काम करने के लिए एक अच्छा विषय दे दिया है। देश के कुछ प्रसिद्ध वैज्ञानिकों की टिप्पणी के साथ आप इसे जल्दी ही'वॉयेजर'पर देखेंगे।
    संदीप निगम

    जवाब देंहटाएं